- चलो तुम्हे आज वो ग़ज़ल सुनाता हूँ
मै जिसको रोज ओड़ता बिछाता हूँ
जिस्म बेच कर रोटी की कीमत चुकती बहनें
और मुर्दा सपने ढ़ोती बूढी मौं के आंसू
सड़क पर जूठन बटोरते हमारे नन्हे हाथ
अब तुम समझे रात भर मै क्या गुनगुनाता हूँ
तुम्हारे टाई सूट से उडती फ्रेंच और अमरीकन परफ्यूम की खुशबू
और
मुल्क के वास्ते खेत में झुलसता मेरा बूढा बाप
तुम्हे शायद मालूम नहीं
मै
जिस्म की भट्टी में
अब कौन सी आग
दहकाता हूँ
चलो तुम्हे आज वो ग़ज़ल सुनाता हूँ
मै जिसको रोज ओड़ता बिछाता हूँ
कुमार प्रवीण
त्यागी
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